मसौली बाराबंकी । मसौली में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन बाल व्यास परमपूज्य शशिकांत महाराज ने कहा आपका स्वभाव है प्रेम करना प्रेम करना सिखाया नहीं जाता है ।हर व्यक्ति के अन्दर स्वाभाविक रूप से प्रेम विद्यमान अन्तर यही है कोई धन से प्रेम कर रहा है कोई तन से प्रेम कर रहा है कोई संसार से प्रेम कर रहा है । लेकिन वही प्रेम हम भगवान से करने लग जाये तो वहीं प्रेम भक्ति है ।पुराणों में नारद मुनि के तीन जन्मों की कथाओं का उल्लेख है।पहले जन्म में देवर्षि नारद उपबर्हन नाम के गंधर्व थे। जिनका विवाह भी हुआ था। एक बार ब्रह्माजी की सभा में सभी देवता और गंधर्व भगवान का संकीर्तन करने आए, तो वे भी अपनी स्त्रियों सहित वहां गए। पर कीर्तन के बीच ही वह हंसी- मजाक करने लगे।जिन्हें देख ब्रह्मा जी को गुस्सा आ गया। उन्होंने नारद मुनि को शुद्र होने का श्राप दे दिया।
इस श्राप से दूसरे जन्म में वे शुद्र हुए. इस जन्म में पैदा होने के बाद ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। इनकी माता दासी का कार्य कर इनका भरण- पोषण करने लगी। एक दिन उनके गांव में कुछ महात्मा चातुर्मास बिताने आए तो नारदजी ने उनकी खूब सेवा की इससे उनके सारे पाप धुल गए। जाते समय महात्माओं ने प्रसन्न होकर उन्हें भगवान नारायण के नाम का जप व उनके स्वरूप का ध्यान करने का उपदेश दिया।एक दिन सांप के काटने से इनकी मां भी चल बसी तो ये अनाथों के नाथ दीनानाथ का भजन करने के वन में चले गए।एक दिन जब नारदजी पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान का ध्यान कर रहे थे, तब अचानक भगवान इनके ह्रदय में प्रकट हो गए।पर अपना दिव्य स्वरूप दिखाकर वे जल्द ही अंतर्धान हो गए।इसके बाद तो भगवान का दुबारा दर्शन करने के लिए नारदजी व्याकुल हो गए। पर तप करने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली। अंत में आकाशवाणी से उन्हें अगले जन्म में भगवान के दर्शन होने की सूचना मिली।
इसके बाद समय पाकर मृत्यु होने पर कल्प के अंत में वे ब्रह्माजी के मानस पुत्र के रूप में अवतरित हुए। जो भगवान के सर्वश्रेष्ठ भक्त बन उनका गुणगान करते हुए विचरण करने लगे। आयोजक मीरा देवी रामकिशोर यज्ञसैनी अभय आयुष,ओम,नितेश धर्मेन्द्र पूर्व ,( प्रधान ) वैभव, विनायक ,प्रतीक, अभिषेक यज्ञसैनी,